Wednesday 11 July 2012

आचार्य चाणक्य जी के बारे में दो शव्द

इतिहास के प्रथम युग निर्माता ,युग पुरुष की उपाधि से सम्मानित आचार्य चाणक्य की विद्द्वता के वारे में जितना लिखा जाये उतना कम है |आचार्य तत्कालीन समाज के गहन अध्येता तथा संस्कृति के प्रकांड विद्द्वान थे |उनसे सम्बन्धित उनके जीवन कल विभिन्न घटनाक्रम एवं उदाहरणों से सहज ही अनुमान लगता है की आचार्य अति कुशाग्र वुद्दी के स्वामी ही नहीं अपितु एक अर्थशाष्त्री ,राजनीतिज्ञ,कूटनीतिज्ञ एवं विचारक थे | इनका पितृ प्रदत नाम विष्णुगुप्त था |इसके आलावा हेमचंद रचित अभिदान “चिन्तामणि” में आचार्य के चडकातम्ज ,द्रामिल ,मल्लनाग ,वातस्यायन, ,कुटिल ,अंगुल तथा पक्षिलस्वामिन नाम भी मिलते है |आचार्य का जन्म किस शुभ महूर्त एवं किस स्थान पर हुआ ,इसकी ऐतहासिक जानकारी नहीं है | उनकी प्रारंभिक शिक्षा –दीक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में हुई |बाद में वे इसी विधालय में आचार्य बने |
               नन्द राजवंश के नवे नन्द के रूप में मगध के सम्राट महानंद ने आचार्य को एक बार श्राद्द-भोज में अपमानित कर दिया |आचर्य ने उसी के दरवार में नंदवंश को जड़-मूल से समाप्त करने प्रण कर लिया |महानंद को अपनी ही मुरा नाम की एक दासी के साथ अवैध संबंध थे |जिसके कारण मुरा गर्भवती हुई ,कितु लोक लाज के भय से महानंद ने मुरा को देश से निकल दिया |देश से निकाले जाने के बाद मुरा ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया |उसका नाम चन्द्रगुप्त रखा गया |आचार्य ने इसी चन्द्रगुप्त मोर्य के हाथो यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर को पराजित एवं घायल अवस्था में भारत भूमि से खदेड़वा दिया ,उसकी यूनान जाते समय रास्ते में मिरतु हो गई |तत्पश्चात चन्द्रगुप्त के हाथो महानंद का सर्वनाश कराकर अपना प्रण पूरा किया ,उसके बाद चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट बनाकर स्वंय उसके महामंत्री बने |
                आचार्य चाणक्य के बारे में भले ही प्रमाणिक जानकारी नहीं है ,लेकिन यह तो सिद्द है की ,आचार्य एक दासी –पुत्र के गुरु ,मार्गदर्शक एवं परम हितेषी बनकर बड़े से बड़े राजा के राज्य का विनाश करने में कुशल थे |महानंद के राज्य का सर्वनाश कराकर चन्द्रगुप्त मोर्य को उसके राज्य पर प्रतिष्ठित करना आचार्य की बुद्दिमता का इससे बड़ा उदाहरण और दूसरा नहीं हो सकता |
                  उपरोक्त संक्षिप्त जानकारी एवं उनकी प्राम्भिक शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला विश्वविद्दालय के छात्र एवं बाद में उसी विश्वविद्दालय में आचार्य बनना ही संकेत करते है ,की आचार्य का जन्म ईसा से लगभग ३२५ वर्ष पूर्व चन्द्रगुप्त मोर्य कल में झेलम जनपद में (वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाव प्रान्त में है )आज से लगभग २३५० वर्ष पूर्व हुआ होगा |