1)
पुत्र वे हैं जो पिता के भक्त हैं ,पिता वही है जो पुत्रों का पालन
पोषण करता है ,मित्र वही है जिसका विश्वास किया
जा सके स्त्री वही है जिससे सुख की प्राप्ति होती है |
2)
बुद्धिमानो के द्धारा अपने पुत्र
और पुत्रियां निरन्तर ,सदा अनेक प्रकार के सुशीलता ,शुभ गुणों में नियुक्त किये जाने
चाहिएं ,क्योंकि नीति के जानने
वाले तथा शील से सम्पन्न व्यक्ति ही कुल –कुल में पूज्यनीय होते हैं |
3)
वह माता शत्रु है और पिता वैरी है
जिसके द्धारा अपना बालक नहीं पढ़ाया गया |वह विधाहीन बालक विद्धानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत और कुशोभित होता है
जैसे हंसों के वीच में वगुला |
4)
दुलार करने से ,लाड़ लड़ाने से पुत्रों में बहुत से
दोष उत्पन्न होते है और ताड़ना करने ,दण्ड देने से बहुत से गुण आते हैं
इसलिए पुत्र और पुत्रियों को ,शिष्य और शिष्यों को ताड़ना करते
रहें ,दण्ड देते रहें ,लाड़ तो कभी न करें |
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