Monday 19 August 2013


आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि व्यक्ति को किन-किन बातों में संकोच नहीं करना चाहिए.

1-  धन और अन्न के व्यापार और क्रय-विक्रय में तथा विधा का संग्रह करने में और भोजन के विषय में और व्यवहार में लज्जा और संकोच न करने वाला मनुष्य सुखी होता है |

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि किन-किन बातो को किसी के सामने नहीं कहना चाहिए .

1-  धन का नाश ,मन का सन्ताप तथा घर की बुराईयों ,दोषों को,किसी के द्धारा ठगे जाने को और किसी के द्धारा हुए अपने अपमान को बुद्दिमान प्रकाशित प्रकट न करे |

Saturday 17 August 2013

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि किससे क्या सीख व् शिक्षा लेनी चाहिए .

1-  मनुष्य कों सिंह ,शेर से एक गुण ,बगुले से एक गुण तथा कुक्कुट ,मुर्गे से चार गुण सीखने चाहिएं, कौए से पांच गुण ,कुत्ते से छह गुण और गधे से तीन गुण सीखने चाहिए व ग्रहण करने चाहिएं |
2-  मनुष्य जो बड़ा अथवा छोटा कार्य करना चाहता है उस कार्य को पूर्ण शक्ति लगाकर  ,सब प्रकार के प्रयत्नों से करे - इसे सिंह से एक शिक्षा ग्रहण करना ,सीखना कहते हैं |
3-  बुद्दिमान मनुष्य बगुले की भांति एकाग्रचित्त होकर तथा इन्द्रियों कों बश में करके देश ,काल और अपने बल कों जानकर सारे कार्यों कों सिद्द करे |
4-  यथासमय और उचित समय जागना तथा युद्द के लिए सदा उद्धत रहना और बन्धुओं में /को उचित विभाग (हिस्सा )देना तथा स्वयं आक्रमण करके ,छीनकर भोजन करना- इन चार बातों कों मुर्गे से सीखना चाहिए |
5-  छिपकर मैथुन करना और ढीठपना तथा समय-समय पर संग्रह करना ,सदा प्रमादरहित होकर जागरूक रहना तथा किसी पर भी विश्वास न करना-इन पांच बातों कों कौए से सीखना चाहिए |
6-  बहुत खाने की शक्ति रखने वाला ,न मिलने पर थोड़े में ही सन्तुष्ट हों जाना ,खूब सोने वाला परन्तु तनिक सी आहट होते ही जागने वाला ,झटपट जागना ,स्वामी की भक्ति ,स्वामी के प्रति अनुरक्ति ,मालिक के प्रति वफादारी और शूरता- ये छह गुण कुत्ते से सीखने चाहिएं |
7-  अत्यन्त थक जाने पर भी भार कों ढोते जाना तथा सर्दी-गर्मी कों नहीं देखना  ,सर्दी-गर्मी की परवाह नहीं करना और सदा सन्तुष्ट होकर विचरना ,सन्तोष से जीवन बिताना- इन तीन बातों को गधे से सीखना चाहिए |

8-  जो मनुष्य इन बीस गुणों का आचरण करेगा ,इन्हे जीवन में धारण करेगा वह सब कार्यों और अवस्थाओं में किसी से न जीता जाने वाला ,विजयी हों जाएगा

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि किस तरह के लोगो के साथ सुख नहीं मिलता .

1-  दुष्ट राजा के राज्य से अथवा राज्य में प्रजा को सुख कुत: कहां ? धोखेबाज मित्र की मित्रता से / में आनन्द कहां है और दुष्ट स्त्री कों भार्या बनाने से घर में प्रीति कहां ? खोटे शिष्य कों पढ़ाने वाले का यश कैसे होगा ?

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि किस तरह के लोगो का न होना उत्तम है .

1-      राजा का न होना श्रेष्ठ है परन्तु दुष्ट राजा का राज्य होना अच्छा नहीं है ,मित्र का न होना उत्तम है किन्तु खोटे ,धोखेबाज मित्र का मित्र होना उत्तम नहीं है ,शिष्य का न होना अच्छा है लेकिन बुरे शिष्य को शिष्य बनाना अच्छा नहीं है ,पत्नी का न होना श्रेष्ठ है परन्तु दुष्ट स्त्री कों पत्नी बनाना उत्तम नहीं है |


आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि किसको किस तरह अपने वश में किया जाए .

1-  धन-लोलुप ,लोभी मनुष्य कों धन के द्धारा वश में करना चाहिए ,अहंकारी ,अभिमानी कों हाथ जोड़कर वश में करना चाहिए ,मूर्ख कों उसकी इच्छा के अनुकूल कार्य करने से और बुद्दिमान मनुष्य कों सत्य बताकर वश में करना चाहिए |

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि कौन किसका शत्रु होता .

1-  ऋण लेने वाला पिता शत्रु होता ै और व्यभिचार करने वाली माता शत्रु होती है ,सुन्दर पत्नी शत्रु होती है तथा मूर्ख पुत्र भी शत्रु होता है |

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कौन किसके द्वारा किये गये कर्मो का फल भोगता .

1-  राष्ट्र में किए पापों कों राजा तथा राजा के पापों कों पुरोहित भोगता है ,और स्त्री के द्धारा किए हुए पापों कों पति तथा शिष्य के द्धारा किए हुए पापों कों गुरु भोगता है |

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कि जो जैसा कर करता वो वैसा फल भोगता.

1-  जीव स्वयं कर्म करता है स्वयं ही उसके शुभ और अशुभ फल कों भोगता है |वह स्वयं संसार में विभिन्न ,योनियों में भ्रमण करता है ,चक्कर काटता है और स्वयं ही पुरुषार्थ करके उससे ,उस संसार-चक्र ,संसार-बन्धन, आवागमन के चक्र से छूटकर मोक्ष प्राप्त करता है |

आचार्य चाणक्य जी ने बताया कौन-कौन लोग कुछ भी नहीं देख पाते.

1-  जन्म का अंन्धा नहीं और कामान्ध भी कुछ भी नहीं देख पाता ,शराब आदि के कारण उन्मत=पागल भी नहीं देखता तथा स्वर्थी मनुष्य किसी काम के दोषों को नहीं देखता |

आचार्य चाणक्य जी ने काल के वारे में क्या कहा .

1-  काल ,समय सब प्राणियों कों पचाता है ,जीर्ण करता है ,खा जाता है ,काल ही सब प्रजाओं का नाश करता है ,सोये हुओं में अर्थात सब पदार्थों  के क्षय हों जाने पर काल जागता रहता है |निश्चय ही काल टाला नहीं जा सकता ,काल का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता |